धर्म एवं दर्शन >> बुधवार व्रत कथा बुधवार व्रत कथागोपाल शुक्ल
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बुधवार के व्रत की कथा
बुधवार व्रत की कथा
एक समय किसी नगर में एक साहूकार रहता था। वह बहुत धनवान था। साहूकार का विवाह नगर की सुंदर और गुणवंती लड़की से हुआ था। एक बार वह अपनी पत्नी को लेने बुधवार के दिन ससुराल गया और पत्नी के माता-पिता से विदा कराने के लिए कहा। माता-पिता बोले- 'बेटा, आज बुधवार है। बुधवार को किसी भी शुभ कार्य के लिए यात्रा नहीं करते।' लेकिन वो नहीं माना। उसने वहम की बातों को न मानने की बात कही।
दोनों ने बैलगाड़ी से यात्रा प्रारंभ की। दो कोस की यात्रा के बाद उसकी गाड़ी का एक पहिया टूट गया। वहाँ से दोनों ने पैदल ही यात्रा शुरू की। रास्ते में पत्नी को प्यास लगी। साहूकार उसे एक पेड़ के नीचे बैठाकर जल लेने चला गया।
थोड़ी देर बाद जब वो कहीं से जल लेकर वापस आया तो वह बुरी तरह हैरान हो उठा क्योंकि उसकी पत्नी के पास उसकी ही शक्ल-सूरत का एक दूसरा व्यक्ति बैठा था। पत्नी भी साहूकार को देखकर हैरान रह गई। वह दोनों में कोई अंतर नहीं कर पाई। साहूकार ने उस व्यक्ति से पूछा- 'तुम कौन हो और मेरी पत्नी के पास क्यों बैठे हो?' साहूकार की बात सुनकर उस व्यक्ति ने कहा- 'अरे भाई, यह मेरी पत्नी है। मैं अपनी पत्नी को ससुराल से विदा करा कर लाया हूँ। लेकिन तुम कौन हो जो मुझसे ऐसा प्रश्न कर रहे हो?'
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